• Episode 40 - You फूल
    2025/07/06
    भटकना तुम्हारी स्वाभाविक प्रवृति थी, the natural you. इसमें तुम्हें आनंद मिलता था, अब ये कह रहे हैं कि भटकने से तुम्हें रोकेंगे। मैं मन ही मन हंस पड़ता हूं।
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  • Episode 39 - बेवकूफ़ DNA
    2025/06/17
    मैं लाइटर रगड़ कर चिंगारी निकाल लेता हूं और उससे मानवजाति के पूर्वजों को श्रद्धांजलि देता हूं।
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  • Episode 38 - बस दो मिनट
    2025/05/14
    कहीं-कहीं किसी दीवार, खिड़की या घर को देखकर ऐसा भी लगता है, जैसे मैं यहां पहले भी आया था। इस खिड़की से मैंने भी कभी बाहर को झांका था, घाटी में आवाज़ दी थी। इस दरवाज़े से बाहर निकलते वक्त, आवारा हवा मेरे भी बालों से टकराई थी। इस दीवार पर थक कर कभी मैंने भी पीठ टिकाई थी।
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  • Episode 37 - सबसे गुस्सा
    2025/05/01
    पूरे घर में वो एक कोना मय्यसर नहीं की मैं सुकून से बैठ कर कुछ पलों के लिए अपनी आँखें बंद कर सकूं। आँखें बंद करने पर चिंताओं की छाया डोलने लगती है, इसलिए मैं आँखें खुली रखता हूं।
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  • Episode 36 - कर लो दुनियां मुट्ठी में
    2025/05/01
    मुझे ठीक से याद भी नहीं कि मैंने अपने आपको कमज़ोर मानना कब शुरू किया। कब से मैंने ख़ुद के लिए खड़ा होना छोड़ दिया था।
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    3 分
  • Episode 35 - पितृ दोष
    2025/03/23
    उसे भूख लगी है। उसकी मां ने रख छोड़ा है, अखबारी पन्ने में लिपटा ब्रेड पकोड़ा। उस ब्रेड पकोड़े पर नज़र है, सामने वाले घर के छज्जे पर बैठे कव्वे की। कव्वे का मानना है कि यदि वो ये ब्रेड पकोड़ा खा लेगा तो बच्चे का पितृ दोष दूर हो जाएगा।
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  • Episode 34 - मेरी मैं-मैं, मैं जानूं
    2025/03/11
    मैं जीवन में अर्थ ढूंढते ढूंढते थक गया हूं। अब ऐसी स्थिति आ चुकी है कि ज़िंदगी के मायने ढूंढना और मतलबी होना, एक दूजे के समानांतर लगने लगा है।
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    4 分
  • Episode 33 - Solo Traveler
    2025/03/03
    मुझे काफ़ी हद तक ये बात सही लगती है कि जीवन खेद के साथ ख़त्म करने वाली यात्रा तो बिल्कुल नहीं है। अगर गौर से देखा जाए तो आनंद एक अवस्था है, जो भीतर से फूटती है। एक कस्तूरी है खुद में, जिसका हमें संभवतः ज्ञान नहीं।
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    4 分