
ईद उल-फ़िकर, अनुभव का अचार और 'मर्डर कूपन' का इस्तेमाल! : तीन ताल, S2 E95
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このコンテンツについて
- 'मोमिनों रोज़े रखो' जैसे आधुनिक त्योहारी गीत
- होली की बदमाशी, आलस और मता जाने की क्रिया
- लउआ अलंकार, होली की थकान और बेहोशी
- बजुर्गों की विसडम और सिखावन
- लठ मार लॉजिक और फ्री का फ़लसफा
- 'जाने दो' की उदारता
- लोक का विसडम और आंखों की शर्म
- मर्डर कूपन का सही इस्तेमाल करने 'इस्तेमाल' हो जाने की कल्पना
- खां चा के अतरंगी खयाल और जेन ज़ी जोगीरे
- चिट्ठियां
प्रड्यूसर : अतुल तिवारी
साउंड मिक्स : सूरज