• गोपाल लाल जोरवाल

  • 著者: Gopal Lal Jorwal
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गोपाल लाल जोरवाल

著者: Gopal Lal Jorwal
  • サマリー

  • यह मुंशी प्रेमचंद की लिखी हुई कहानी कफन से है जिसमें एकभूखे परिवार के बारे में बताया गया है किस प्रकार से एक भूखे आप और बेटे घर की मारीहुई बहू के कफन के पैसों से शराब पीते हैं और किस प्रकार से वह दान भी करते हैं और अपनी आत्मा को खुश करते हैं इसी से यह जाहिर होता है कि हमारे समाज एक हिस्सा ऐसा भी है जिसे आज भी भूखा रहना पड़ता है प्रेमचंद जी ने इस कहानी के माध्यम सेअलसी एवं भूख बेरोजगारी बकारी और गरीबीं को दर्शाया है।
    Gopal Lal Jorwal
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あらすじ・解説

यह मुंशी प्रेमचंद की लिखी हुई कहानी कफन से है जिसमें एकभूखे परिवार के बारे में बताया गया है किस प्रकार से एक भूखे आप और बेटे घर की मारीहुई बहू के कफन के पैसों से शराब पीते हैं और किस प्रकार से वह दान भी करते हैं और अपनी आत्मा को खुश करते हैं इसी से यह जाहिर होता है कि हमारे समाज एक हिस्सा ऐसा भी है जिसे आज भी भूखा रहना पड़ता है प्रेमचंद जी ने इस कहानी के माध्यम सेअलसी एवं भूख बेरोजगारी बकारी और गरीबीं को दर्शाया है।
Gopal Lal Jorwal
エピソード
  • दरवाजे पर दस्तक :प्रोफेसर की डायरी लेखक-डॉ लक्ष्मण यादव । professor ki Dairy :Dr. lakshman Yadav
    2024/04/03
    यह प्रोफेसर लक्ष्मण यादव की लिखी हुई आत्मकथमक डायरी का भाग दो है। जिसका शीर्षक है दरवाजे पर दस्तक
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    19 分
  • प्रोफेसर की डायरी लेखक-लक्ष्मण यादव भाग-1 professor ki diary writer-dr.Lakshman Yadav Part-1
    2024/03/18
    यह डॉक्टर लक्ष्मण यादव की लिखी हुई अपनी डायरी है जिसमें की उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद को प्राप्त करना और उसको छोड़ना यह सारी बातें उन्होंने डायरी के रूप में लिखी है डॉक्टर यादव ने बताया कि किस प्रकार से वह दिल्ली विश्वविद्यालय में ऐड हो प्रोफेसर नियुक्त हुए और किस प्रकार से उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय मजबूर होकर छोड़ना पड़ा और क्या-क्या घटनाक्रम हुए उन्होंने डायरी में इन्हें उतारा है। किस प्रकार उन्हें दलित होने पर सहना पड़ा। डॉ मौलाना आजाद कलाम महाविद्यालय में एड हॉक प्रोफेसर के पद पर दो लक्ष्मण यादव को नियुक्त किया गया और जब प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए थे तो उसेे पहले उन्होंने इंटरव्यू दिया था और इस भाग में उन्होंने इंटरव्यू और इंटरव्यू के पहले की घटना है और इन सबको यहां पर बयान किया है। प्रोफेसर यादव की यह डायरी हमें दिखाईी है कि किस प्रकार से उच्च शिक्षा में भी बड़े-बड़े घोटाले होते हैं और किस प्रकार से वहां पर जातिवाद होता है जाती के आधार पर एक प्रोफेसर तक को प्रताड़ित किया जाता है और मजबूर किया जाता है उसे अपनी जॉबसे छोड़ने के लिए और आखिर में वह दुखी होकर के जॉब छोड़ देता है और फिर देश की असमानता को इस खोकली बुनियादी दिखाओ की समानता को चलेंगे करने के लिए निकल जाता है और आज तक उसने क्या परिवर्तन हुआ यह हम इस डायरी में देखते हैं।
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    1 時間 32 分
  • पता नही
    2024/01/15
    यह मेरे द्वारा लिखित एक छोटी सी सागर कविता है जिसमें की यह समझाया गया कि हमारा जीवन का जीवन का मूल उद्देश्य वह नहीं है जो हम सब समझते हैं यह सब तो जीवन के उद्देश्य के लिए एक मात्रा कम है जीवन का उद्देश्य तो कुछ और ही है वह व्यक्ति का अलग-अलग है और वह होना चाहिए
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    1 分

गोपाल लाल जोरवालに寄せられたリスナーの声

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