
श्री भगवद गीता | अर्जुन को पुनः शांति प्राप्ति | अध्याय 11 श्लोक 51 | Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 51"
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📜 Description:
"॥ श्री भगवद गीता - अध्याय 11, श्लोक 51 ॥"
🔹 संस्कृत श्लोक:
अर्जुन उवाच |
"दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन |
इदानीमस्मि संवृत्त: सचेता: प्रकृतिं गत: || 51||"
🔹 श्लोक अर्थ:
अर्जुन बोले:
"हे जनार्दन! अब मैंने आपका यह सौम्य (मधुर) मानुषी रूप देख लिया है।
अब मैं अपने होश में आ गया हूँ और मेरी स्वाभाविक स्थिति लौट आई है।"
🔹 व्याख्या:
- अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण के विराट रूप को देखकर अत्यंत भयभीत हो गए थे।
- जब श्रीकृष्ण ने पुनः अपना सौम्य रूप धारण किया, तब अर्जुन को शांति और आत्मसंयम प्राप्त हुआ।
- यह दर्शाता है कि मनुष्य के लिए भगवान का सहज, कृपालु रूप ही अधिक उपयुक्त और प्रिय होता है।
- भगवान चाहे कितने भी विराट और अद्भुत हों, भक्त के लिए वे हमेशा सुलभ और प्रेममयी होते हैं।
📌 महत्वपूर्ण संदेश:
✅ सच्ची शांति केवल भगवान की शरण में जाने से ही मिलती है।
✅ डर और भ्रम से मुक्त होकर, अर्जुन अब पुनः अपने कर्तव्य के लिए तैयार हो जाते हैं।
✅ भगवान केवल शक्ति के प्रतीक नहीं, बल्कि करुणा और प्रेम के साकार रूप भी हैं।
🌿 यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जब भी जीवन में भ्रम और भय उत्पन्न हो, तब भगवान की भक्ति से हम पुनः अपनी प्रकृति में लौट सकते हैं।
📿 "हरे कृष्ण हरे राम" का जप करें और अपने मन को शांति दें।
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🌸 "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।"