• सन्यासी और चूहा (The Saint and the Rat)

  • 2022/12/08
  • 再生時間: 10 分
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सन्यासी और चूहा (The Saint and the Rat)

  • サマリー

  • भारत के दक्षिण में स्थित महिलारोप्य नामक नगर के बाहर भगवान् शंकर का एक मठ था, जहाँ ताम्रचूड़ नामक सन्यासी नगर से भिक्षा माँगकर अपना जीवनयापन किया करता था। वह आधी भिक्षा से अपना पेट भरता था और आधी को एक पोटली में बाँधकर खूँटी पर लटका दिया करता था। उस आधी भिक्षा को वह उस मठ की सफ़ाई करने वाले कर्मचारियों को उनके वेतन के रूप में बाँट देता था। इस प्रकार उस मठ का रखरखाव भली प्रकार हो जाता था। एक दिन हिरण्यक नामक चूहे से मठ के आसपास रहने वाले चूहों ने कहा , “हम अपनी भूख मिटाने के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं जबकि खूँटी पर टँगी पोटली में स्वादिष्ट भोजन बँधा रहता है। हम कोशिश करके भी उस खूँटी तक नहीं पहुँच पाते हैं। आप हमारी कुछ सहायता क्यों नहीं करते?” अपने साथियों की बात सुनकर हिरण्यक उनके साथ मठ में पहुँच गया। उसने एक ऊँची छलाँग लगाई। पोटली में रखे भोजन को स्वयं भी खाया और अपने साथियों को भी खिलाया। अब यह सिलसिला हर रोज़ चलने लगा। इससे सफ़ाई कर्मचारियों ने वेतन ना पाकर मठ में काम करना बन्द कर दिया और सन्यासी परेशान हो उठा। सन्यासी ने हिरण्यक को रोकने का पूरा प्रयास किया, किन्तु उसके सोते ही हिरण्यक अपने काम में लग जाता था। अचानक ताम्रचूड़ एक फटा हुआ बाँस ले आया और हिरण्यक को भिक्षापात्र से दूर रखने के लिए सोते समय उस बाँस को धरती पर पटकने लगा। बाँस के प्रहार के डर से हिरण्यक अन्न खाए बिना ही भाग उठता था। इस प्रकार उस सन्यासी और हिरण्यक की पूरी-पूरी रात एक-दूसरे को छकाने में ही बीतने लगी। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
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あらすじ・解説

भारत के दक्षिण में स्थित महिलारोप्य नामक नगर के बाहर भगवान् शंकर का एक मठ था, जहाँ ताम्रचूड़ नामक सन्यासी नगर से भिक्षा माँगकर अपना जीवनयापन किया करता था। वह आधी भिक्षा से अपना पेट भरता था और आधी को एक पोटली में बाँधकर खूँटी पर लटका दिया करता था। उस आधी भिक्षा को वह उस मठ की सफ़ाई करने वाले कर्मचारियों को उनके वेतन के रूप में बाँट देता था। इस प्रकार उस मठ का रखरखाव भली प्रकार हो जाता था। एक दिन हिरण्यक नामक चूहे से मठ के आसपास रहने वाले चूहों ने कहा , “हम अपनी भूख मिटाने के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं जबकि खूँटी पर टँगी पोटली में स्वादिष्ट भोजन बँधा रहता है। हम कोशिश करके भी उस खूँटी तक नहीं पहुँच पाते हैं। आप हमारी कुछ सहायता क्यों नहीं करते?” अपने साथियों की बात सुनकर हिरण्यक उनके साथ मठ में पहुँच गया। उसने एक ऊँची छलाँग लगाई। पोटली में रखे भोजन को स्वयं भी खाया और अपने साथियों को भी खिलाया। अब यह सिलसिला हर रोज़ चलने लगा। इससे सफ़ाई कर्मचारियों ने वेतन ना पाकर मठ में काम करना बन्द कर दिया और सन्यासी परेशान हो उठा। सन्यासी ने हिरण्यक को रोकने का पूरा प्रयास किया, किन्तु उसके सोते ही हिरण्यक अपने काम में लग जाता था। अचानक ताम्रचूड़ एक फटा हुआ बाँस ले आया और हिरण्यक को भिक्षापात्र से दूर रखने के लिए सोते समय उस बाँस को धरती पर पटकने लगा। बाँस के प्रहार के डर से हिरण्यक अन्न खाए बिना ही भाग उठता था। इस प्रकार उस सन्यासी और हिरण्यक की पूरी-पूरी रात एक-दूसरे को छकाने में ही बीतने लगी। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices

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