• Ch7-6. पापियों के उद्धारक, प्रभु की स्तुति हो (रोमियों ७:१४-८:२)

  • 2022/12/08
  • 再生時間: 1 時間 9 分
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Ch7-6. पापियों के उद्धारक, प्रभु की स्तुति हो (रोमियों ७:१४-८:२)

  • サマリー

  • सभी मनुष्यों को आदम और हव्वा से पाप विरासत में मिला और वे पाप के बीज बन गए। इस प्रकार हम मूल रूप से पाप की संतान के रूप में पैदा होते हैं और अनिवार्य रूप से पापी प्राणी बन जाते हैं। दुनिया में सभी लोग एक पूर्वज आदम के कारण पापी बन जाते हैं, हालांकि उनमें से कोई भी पापी बनना नहीं चाहता।
    पाप का मूल क्या है? यह हमारे माता-पिता से विरासत में मिला है। हम अपने ह्रदय में पाप के साथ पैदा हुए हैं। यह पापियों की विरासत में मिली प्रकृति है। हमारे पास १२ प्रकार के पाप हैं जो आदम और हव्वा से विरासत में मिले हैं। ये पाप—व्यभिचार, परस्त्रीगमन, हत्या, चोरी, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान और मूर्खता—हमारे जन्म के समय से ही हमारे हृदयों में अंतर्निहित हैं। मनुष्य का मूल स्वभाव पाप है।

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あらすじ・解説

सभी मनुष्यों को आदम और हव्वा से पाप विरासत में मिला और वे पाप के बीज बन गए। इस प्रकार हम मूल रूप से पाप की संतान के रूप में पैदा होते हैं और अनिवार्य रूप से पापी प्राणी बन जाते हैं। दुनिया में सभी लोग एक पूर्वज आदम के कारण पापी बन जाते हैं, हालांकि उनमें से कोई भी पापी बनना नहीं चाहता।
पाप का मूल क्या है? यह हमारे माता-पिता से विरासत में मिला है। हम अपने ह्रदय में पाप के साथ पैदा हुए हैं। यह पापियों की विरासत में मिली प्रकृति है। हमारे पास १२ प्रकार के पाप हैं जो आदम और हव्वा से विरासत में मिले हैं। ये पाप—व्यभिचार, परस्त्रीगमन, हत्या, चोरी, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान और मूर्खता—हमारे जन्म के समय से ही हमारे हृदयों में अंतर्निहित हैं। मनुष्य का मूल स्वभाव पाप है।

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