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Shri Bhagavad Gita Chapter 12 | श्री भगवद गीता अध्याय 12 | श्लोक 17

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यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के बारहवें अध्याय (भक्तियोग) का 17वाँ श्लोक है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय भक्तों के लक्षण बताते हैं।

"यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥"

"जो न हर्षित (अत्यधिक प्रसन्न) होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न किसी वस्तु की कामना करता है, जो शुभ और अशुभ (सुख-दुख) दोनों का त्याग कर चुका है—ऐसा भक्त मुझमें दृढ़ भक्ति रखने वाला है और वह मुझे अति प्रिय है।"

"इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण सच्चे भक्त के गुणों को बताते हैं।
वे कहते हैं कि मेरा प्रिय भक्त वह है जो न तो अत्यधिक प्रसन्न होता है, न द्वेष करता है, न किसी बात का शोक करता है और न ही किसी चीज़ की लालसा रखता है।
वह शुभ और अशुभ दोनों को समान रूप से छोड़ चुका होता है और अपनी भक्ति में अडिग रहता है।
ऐसा भक्त ही वास्तव में मुझे अत्यंत प्रिय होता है।"

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