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サマリー
あらすじ・解説
“माला तो कर में फिरे, जीभी फिरे मुख माँहि । मनवा तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं ॥“ “माला फेरत जुग भया, मिटा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर ।“ “कबीर माला काठ की, कहि समझावे तोही । मन ना फिरावे आपना, कहा फिरावे मोहि ॥“ “मूंड मुंडावत दिन गए, अजहूँ न मिलया राम | राम नाम कहू क्या करे, जे मन के औरे काम ||” “सेष सबूरी बाहिरा, क्या हज कावै जाई | जिनकी दिल स्यावति नहीं, तिनको कहाँ खुदाई ||”