• धान के धनी चाचा : मशीनीकरण ने कैसे धान की कटाई, मड़ाई और भंडारण को आसान और सस्ता बना दिया? आइए जानते हैं
    2021/10/21
    • मशीनीकरण ने कैसे धान की कटाई, मड़ाई और भंडारण को आसान और सस्ता बना दिया? आइए जानते हैं   

       देश में हर साल बड़े पैमाने पर धान का उत्पादन होता है। लेकिन, कटाई से लेकर भंडारण तक           लगभग 10 फीसदी धान ख़राब हो जाता है, जिसका नुकसान किसानों को उठाना पड़ता है। इसकी     सबसे बड़ी वजह है किसानों को धान कटाई, मड़ाई तथा भंडारण के सही तरीकों का अभाव होना।     ऐसे में इस नुकसान को रोकने के लिए किसानों को वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाकर ही धान की       कटाई, मड़ाई और भंडारण के उचित इंतज़ाम करना चाहिए। ताकि किसानों की मेहनत बेकार न        जाए।

    • सही समय पर करें धान की कटाई 

           पारंपरिक विधि से कटाई 

           कंबाइन हार्वेस्टर से कटाई

           धान की मड़ाई या थ्रेसिंग

    • पारंपरिक कटाई की तुलना में कंबाइन हार्वेस्टर से धान की कटाई कैसे फायदेमंद हैं

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  • धान के धनी चाचा E 7: रोपाई से पहले खेत की तयारी कैसे करें ? और क्या हैं इसके फायदे ?
    2021/10/11

    धान की फसल में कीट रोगों पर कैसे नियंत्रण करें? आइए जानते हैं

    भारत में धान का प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन दुनिया के कई देशों से काफी कम है। इसकी सबसे बड़ी वजह है धान की फसल में लगने वाले कीट व रोगों का सही समय पर नियंत्रण नहीं होना। वहीं, दुनियाभर में धान की फसल में लगने कीट तथा रोगों के प्रकोप से सालाना लगभग 10 से 15 फीसदी उत्पादन कम होने का अनुमान है।

    कवक के कारण लगने वाली प्रमुख बीमारियां- 

    ब्लास्ट रोग -

    धान में यह रोग नर्सरी में पौध तैयार करते समय से लेकर फसल बढ़ने तक लग सकता है। यह बीमारी पौधे की पत्तियों, तना तथा गांठों को प्रभावित करता है। यहां तक कि फूलों में इस बीमारी का असर पड़ता है। पत्तियों में शुरूआत में नीले रंगे के धब्बे बन जाते हैं जो बाद में भूरे रंग में तब्दील हो जाते हैं। जिससे पत्तियां मुरझाकर सुख जाती है। तने पर भी इसी तरह के धब्बे निर्मित होते हैं। 

     

    कैसे करें नियंत्रण-

    जैविक -इस रोग से रोकथाम के लिए ट्राइकोडर्मा विराइड प्रति 10 ग्राम मात्रा लेकर प्रति एक किलो बीज को उपचारित करना चाहिए। इसके अलावा बिजाई से स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस की 10 ग्राम मात्रा लेकर प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करना चाहिए। खड़ी फसल के लिए ट्राइकोडर्मा विराइड या स्यूडोमोनास फ्लोरोसिस का लिक्विड फॉर्म्युलेशन की 5 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

     

    ब्राउन स्पॉट-

    यह बीमारी नर्सरी में पौधे तैयार करते समय या पौधे में फूल आने के दो सप्ताह बाद तक हो सकती है। यह पौधे की पत्तियों, तने, फूलों और कोलेप्टाइल जैसे हिस्से को प्रभावित करता है। पत्तियों और फूलों पर विशेष रूप से लगने वाले इस रोग के कारण पौधे पर छोटे भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं। यह धब्बे पहले अंडाकार या बेलनाकार होते है फिर गोल हो जाते हैं। 

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  • धान के धनी चाचा E6 : जानिए कैसे करें धान की खेती में पोषक तत्वों और सिंचाई का प्रबंधन ?
    2021/09/26
    धान की खेती में पोषक तत्वों और सिंचाई का प्रबंधन कैसे करें धान समेत विभिन्न फसलों में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए रासायनिक उर्वरकों का उपयोग तेजी सेबढ़़ा है। इस वजह से खेती की लागत काफी बढ़ गई है। ऐसे में मिट्टी में पोषक तत्वों के स्थायी प्रबंधन की बेहद आवश्यकताहै। जैसा कि आप जानते हैं कि धान की खेती में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, जिंक समेत अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों कीजरूरत पड़ती है। मिट्टी में स्थायी रूप से पोषक तत्वों की पूर्ती के लिए समन्वित खाद प्रबंधन (Integrated NutrientManagement) प्रणाली बेहद कारगर साबित हो सकती है। इसको संक्षिप्त में आईएनएम अवधारणा कहा जाता है। इसप्रणाली में जैविक खाद, खेती के अवशेषों, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, जैव उर्वरक और फसल चक्र को अपनाकर धान की फसलके लिए आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ती की जा सकती है। आर्गेनिक खाद का उपयोगजैविक खाद के लगातार प्रयोग से मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति की जा सकती है। वहीं इसके इस्तेमाल से मिट्टी कीजल ग्रहण करने की क्षमता भी बढ़ती है। इसके लिए धान की रोपाई के 25 से 30 दिनों पहले प्रति हेक्टेयर 10 से 15 टनगोबर की सड़ी खाद डालना चाहिए। गोबर खाद को पूरे खेत में अच्छी तरह से मिलाने के लिए एक जुताई कर दें। इससे खेतके हर हिस्से में पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने में मदद मिलेगी। हरी खाद का उपयोगभूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ाने के लिए हरी खाद का प्रयोग बेहद कारगर माना जाता है। इसके लिए हरी खाद की फसल कोखेत में उगा सकते हैं। जिसके बाद इसे हरी खाद के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा बंजर भूमि में मौजूद हरी खाद जैव उर्वरक का प्रयोगइसके अलावा अजोला समेत कुछ जैविक उर्वरक तौर पर इस्तेमाल किए जा सकते हैं। जो बैक्ट्रीरिया की मदद से मिट्टी मेंजैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद करते हैं। बता दें कि अजोला, एजोस्पाइरिलम जैसे कई जैव उर्वरक है जो कि,,,, अकार्बनिक उर्वरक प्रबंधन कैसे करें?धान की विभिन्न किस्मों के मुताबिक ही खाद एवं उर्वरक प्रबंधन किया जाता है। धान की कम अवधि किस्मों के लिए प्रतिहेक्टेयर 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 ग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश डालना चाहिए। वहीं धान की मध्यमSee omnystudio.com/listener for privacy information.
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  • धान के धनी चाचा E5 : जानिए कैसे मशीनीकरण और आधुनिक तकनीकी अपनाकर लागत हो सकती है कम?
    2021/09/20
    धान की खेती: मशीनीकरण और आधुनिक तकनीकी अपनाकर लागत कम करें  आज देश में धान की खेती करने वाले किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ पानी की समस्या है तो दूसरी तरफ खेती की बढ़ती लागत। नतीजतन, धान की खेती करने वाले किसानों को अपेक्षित मुनाफा नहीं मिल पा रहा है। लिहाजा, खेती के लिए आधुनिक तकनीकों, उपकरणों तथा वैज्ञानिक तौर-तरीकों को अपनाना बेहद जरूरी हो जाता है। गौरतलब हैं कि आज कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण का महत्त्व बढ़ता ही जा रहा है। बावजूद देश में अधिकतर किसान धान या दूसरी फसलों की खेती के लिए परंपरागत कृषि यंत्रों और उपकरणों का ही प्रयोग कर रहे हैं। जिसमें मेहनत, समय और खर्च ज्यादा लगता है, वहीं अपेक्षित उत्पादन भी नहीं मिल पाता है। ऐसे में अगर आधुनिक कृषि यंत्रों, उपकरणों तथा पद्धितियों को अपनाकर धान या दूसरी फसलों की खेती जाए तो लागत कम करके के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।    मशीनीकरण से लागत में 30 फीसदी कमी संभव बचत ही किसानों का असली मुनाफा आधुनिक तकनीकों ने बनाई जगह धान की खेती के लिए अपनाएं मेडागास्कर विधि?क्या है SRI विधि और क्यों धान किसानों के लिए फायदेमंद है  SRI प्रणाली में नर्सरी कैसे तैयार करें? पारंपरिक प्रणाली से कैसे अलग है SRI विधि बीजमात्रा-धान की यह एक उन्नत तकनीक है जिसमें नर्सरी के लिए बेड का निर्माण किया जाता है। खेत समतलीकरण-जहां पारंपरिक विधि में खेत को समतल बनाने के लिए हल एवं बैल की प्रयोग किया जाता है वहीं इसमें आधुनिक कृषि उपकरणों की मदद से खेत का समतल किया जाता है। पौधे लगाने के लिए मॉर्किंग-इस विधि में मॉर्किंग करके पौधों को लगाया जाता है। वहीं पारंपरिक विधि में मॉर्किंग की जरूरत नहीं पड़ती है। बांस या मेटल की मदद से मार्कर का निर्माण किया जाता है। 4.कोनो वीडर का उपयोग-पारंपरिक विधि में कोनो वीडर का उपयोग नहीं किया जा सकता। जबकि इसमें कोनो वीडर का उपयोग करके खेत के खरपतवारों को जैविक खाद में परिवर्तित किया जा सकता है। जो पौधों की बेहतर ग्रोथ के लिए मददगार है। वहीं पारंपरिक विधि में खरपतवार को निकालकर बाहर फेंकना पड़ता है. वहीं जरूरी पोषक तत्वों के लिए रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करना पड़ता है।      See omnystudio.com/listener for privacy information.
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  • धान के धनी चाचा E4: धान के अधिक उत्पादन के लिए उगाए ये प्रमुख उन्नत किस्में
    2021/09/13

    धान के अधिक उत्पादन के लिए उगाए ये प्रमुख उन्नत किस्में  

    जनसंख्या के लिहाज से चीन के बाद भारत सबसे बड़ा देश है। इतनी बड़ी आबादी के लिए अन्न की पूर्ति करना किसी चुनौती से कम नहीं है। ऐसे में किसानों को आज आधुनिक खेती अपनाना होगा। धान भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की प्रमुख खाद्यान्य फसल है। भारत की एक बड़ी आबादी का अन्न धान ही है। देश की अन्न आपूर्ति के लिए जहां किसान विषम परिस्थियों में खेती कर रहे हैं, वहीं कृषि वैज्ञानिक अपनी लगन, अथक प्रयास और शोध के जरिए विभिन्न फसलों, सब्जियों तथा फलों की नई किस्म ईजाद करने में जुटें हैं।  

     

    देश में साल 1960-61 में धान का उत्पादन 34.5 मिलियन टन था। वहीं देश के किसानों और वैज्ञानिकों के सामूहिक प्रयास को देखते हुए सरकार ने साल 2021 के लिए धान उत्पादन का लक्ष्य 11.96 करोड़ टन रखा है। बता दें कि धान का अधिक उत्पादन उन्नत किस्मों के चुनाव, आधुनिक कृषि उपकरणों के इस्तेमाल तथा वैज्ञानिक खेती से ही संभव है। वैसे तो धान की पहली उन्नत किस्म जीईबी-24 साल 1921 में किसानों के बीच जारी की गई थी। तब से लेकर आज तक हमारे कृषि वैज्ञानिक धान की एक हजार से अधिक धान की किस्में ईजाद कर चुके हैं। जो कि अलग-अलग राज्यों की जलवायु, भूमि तथा मौसम के अनुकूल है। वहीं आज बासमती की 23 से अधिक उन्नत किस्में मौजूद है। तो आइए जानते हैं धान की अधिक उत्पादन देने वाली प्रमुख उन्नत किस्में-

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  • धान के धनी चाचा E3 : क्या आप कर रहे हैं धान की खेती के लिए सही बीज का चुनाव ? ......अगर नहीं तो सुनिए ये खास Podcast..
    2021/09/06
    धान की खेती के लिए नर्सरी प्रबंधन और रोपाई कैसे करें? भारत में धान की खेती मुख्यतः रोपाई के जरिए ही की जाती है। हालांकि, जिन क्षेत्रों में पानी की कमी है वहां डीएसआर पद्धति से धान की खेती की जा रही है। रोपाई के जरिये धान की खेती के लिए बीज एवं नर्सरी प्रबंधन एक प्रमुख कार्य है। सबसे पहले नर्सरी में धान की पौध तैयार की जाती है। जिसके बाद पौध रोपण का कार्य किया जाता है। पौधे के अच्छे विकास के लिए कई चरणों से गुजरना पड़ता है। तो आइए जानते हैं धान की खेती के लिए नर्सरी प्रबंधन तथा पौध रोपण कैसें करें-   सही बीज का चुनाव करें धान की खेती के लिए सही बीज का चुनाव करना बेहद आवश्यक है। इसके लिए अधिक उत्पादन देने वाली प्रतिरोधक किस्मों का चुनाव करना चाहिए। बीज के बेहतर अंकुरण के लिए सर्टिफाइड बीज लेना चाहिए। अपने क्षेत्र के लिए अनुशंसित किस्मों का चुनाव करना चाहिए।बीज साफ सुथरा होने के साथ नमी मुक्त होना चाहिए।बीज पुर्णता पका हुआ होना चाहिए जिसमें बेहतर अंकुरण क्षमता हो।बीज को अनुशंसित फूफंदनाशक, कीटनाशक से उपचारित करने के बाद बोना चाहिए।बेहतर तरीके से भंडारित बीज का ही चुनाव करें।   धान की खेती के लिए बीज की मात्रा- हाइब्रिड किस्में- 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बासमती किस्में- 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एसआरआई पद्धति- 7.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर सीधी बुवाई या डीएसआर पद्धति-40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर   धान की खेती के लिए बीजोपचार- सबसे पहले 10 लीटर पानी में नमक डालकर अच्छी तरह घोल बना लें। इसके बाद इसमें 500 ग्राम बीज डालें। पानी की सतह पर तैरने वाले बीज को छलनी की मदद से अलग कर दें। अब बीजों को उपचारित करें।   रासायनिक तरीके से बीजोपचार- धान में फफूंदजनित रोग जैसे ब्लास्ट, ब्राउन स्पाॅट, रूटरोट, बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट आदि का प्रकोप रहता है। इन रोगों से रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 50 ए.सी. की 2 ग्राम मात्रा तथा स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 0.5 ग्राम मात्रा लेकर एक लीटर पानी में अच्छी तरह घोल बना लें। इस घोल में बीजों को 24 घंटे के लिए  भिगोकर रखें।   जैविक बीजोपचार स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस की 10 ग्राम मात्रा लेकर एक लीटर पानी में घोल बना लें। इस घोल में प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा लेकर रातभर भिगोने दें।   धान की खेती के ...
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  • धान की खेती के लिए पडलिंग या गीली जुताई कैसे करें
    2021/08/29

    धान की खेती के लिए पडलिंग या गीली जुताई कैसे करें? आइए जानते हैं इसका महत्त्व 

    खरीफ सीजन के लिए धान की खेती (Paddy Farming) जून-जुलाई महीने में की जाती है। इसके चलते खेत की तैयारी मानसून आने से पहले ही पूरी कर लेनी चाहिए। सबसे पहले मई महीने में खेत की गहरी जुताई की जाती है। इसके बाद 2-3 जुताई कल्टीवेटर तथा रोटावेटर से करते हैं। वहीं अंतिम जुताई के समय खेत में गोबर की सड़ी खाद या वर्मीकम्पोस्ट डालना चाहिए। 

    गौरतलब हैं कि आज धान के किसानों को खेती की आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करना चाहिए। जो कि धान के अधिक तथा गुणवत्तापूर्ण उत्पादन मददगार है। वहीं वैज्ञानिक पद्धति को अपनाने से समय और श्रम की बचत होती है। इससे खेती लागत कम हो जाती है एवं किसानों को धान की खेती से अधिक मुनाफा मिलता है। बता दें कि किसानों को खेत की तैयारी से लेकर धान की कटाई तक कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। 

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  • धान की वैज्ञानिक खेती : रोपाई से पहले ऐसे करें खेत की तैयारी, ये हैं प्रमुख फायदें
    2021/07/12

    भारत भले ही दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक देश है लेकिन प्रति हेक्टेयर के औसत उत्पादन में बहुत पीछे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह हैं आज भी देश में परंपरागत तरीके से ही धान की खेती की जा रही है। ऐसे में उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसानों को वैज्ञानिक तरीके से धान की खेती करना होगी। धान की फसल के उत्पान को बढ़ाने के लिए किसान को जमीन तैयार करने से लेकर रोपाई और कटाई तक छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना चाहिए। धान की मुख्यतः तीन उप-प्रजातियां है इंडिका, जैपोनिका और जावनिका। जहां इंडिका प्रजाति का चावल आकार में लंबा होता है वहीं जैपोनिका प्रजाति का धान गोल तथा जावनिका प्रजाति का धान मध्यम आकार का होता है। धान की रोपाई से पहले इनके पौधे को नर्सरी में तैयार किया जाता है,  इसके बाद खेत को तैयार किया जाता है। खेत को तैयार करने में कई आधुनिक कृषि मशीनरी की मदद ली जाती है। दरअसल, अन्य फसलों की तरह आज धान की खेती काफी खर्चीली है। ऐसे में वैज्ञानिक सुझावों को अपनाकर सही तरीके से मशीनरी का उपयोग किया जाता है तो खर्च कम हो जाता है वहीं उत्पादन में इजाफा होता है। धान उत्पादन को बढ़ाने के लिए खेत की सही तरीके से जुताई करना बेहद आवश्यक है। बता दें कि खेत को सही तरीके से तैयार करने से पौधे की जड़ें आसानी वृद्धि करेगी और पौधे का समूचा विकास होगा। वहीं खरपतवार नियंत्रण में भूमि की तैयारी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा पौधे को पोषक तत्वों को ग्रहण करने में आसानी होती है। रबी की फसल कटने के बाद प्लाऊ की मदद से खेत की गहरी जुताई करें व खेत को कुछ दिनों के लिए बिना पाटा दिए छोड़ दें। प्लाऊ के लिए Mahindra 475 DI XP Plus व Mahindra 575 DI XP Plus बेहतर ट्रैक्टर है। इनकी हाइड्रोलिक क्षमता क्रमश: 1500 व 1650 किलोग्राम है। किफायती माइलेज की वजह से यह किसानों के पसंदीदा ट्रैक्टर है। इससे लागत खर्च काफी कम हो जाता है।

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