エピソード

  • कामगारों को कैसे निराश कर रही है भारत की गिग इकॉनमी?
    2024/06/13

    भारत में गिग इकॉनमी तेजी से बढ़ रही है, लेकिन गिग वर्कर्स को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। जनपहल नाम की संस्था ने गिग वर्कर्स पर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की है जिसमें उनके काम के प्रति दृष्टिकोण को दिखाया गया है। यह रिपोर्ट इन प्रमुख समस्याओं पर विशेष रूप से बात करती है:

    - दिन भर में लंबे समय तक काम,

    - कम कमाई,

    - प्लेटफॉर्म्स द्वारा आईडी की मनमानी ब्लॉकिंग,

    - सालों काम करने के बाद भी कर्मचारी का दर्जा न होना और शारीरिक व मानसिक तनाव।

    इन समस्याओं को गहराई से समझने के लिए, बात मुलाकात के इस एपिसोड में स्नेहा रिछारिया ने इस रिपोर्ट की लीड ऑथर वंदना वासुदेवन से बात की। वह इस बारे में बात करती हैं कि कैसे देश में शिक्षित युवा आजीविका के विकल्प के रूप में केवल गिग वर्क पर निर्भर हैं।

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    38 分
  • 'पढ़ने की आदत भी एक अधिकार है'
    2024/04/29

    2024 लोक सभा चुनाव के पहले फ्री लाइब्रेरीज़ नेटवर्क ने 'द पीपल्स नेशनल लाइब्रेरी पॉलिसी 2024' का एक ड्राफ्ट जारी किया है। इसका मकसद पुस्तकालयों के लिए मानक निर्धारित करना है। फ्री लाइब्रेरीज़ नेटवर्क पूरे दक्षिण एशिया में 250 से अधिक लाइब्रेरीज का एक नेटवर्क है। इस ड्राफ्ट में पुस्तकालयों तक निःशुल्क पहुँच की बात की गयी है। लाइब्रेरीज को बनाना और मेन्टेन करना वर्तनाम में स्टेट लिस्ट का हिस्सा है। जिला स्तर पर पब्लिक लाइब्रेरीज चलती हैं लेकिन इस ड्राफ्ट में पढ़ने की आदत को अधिकार आधारित दृष्टिकोण से देखा गया है।

    जतिन ललित उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के रहने वाले हैं। उन्होंने लगभग तीन साल पहले अपने गाँव में 'बाँसा कम्युनिटी लाइब्रेरी' की शुरुआत की थी। जतिन पेशे से वकील हैं और फ्री लाइब्रेरीज़ नेटवर्क के महासचिव भी हैं। बात मुलाक़ात के इस एपिसोड में स्नेहा रिछारिया ने पीपल्स नेशनल लाइब्रेरी पॉलिसी ड्राफ्ट के साथ-साथ जतिन से 'बाँसा लाइब्रेरी' की शुरुआत, गाँव में पढ़ने की आदत और भारत के वर्तमान लाइब्रेरी परिदृश्य पर बात की।

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    30 分
  • छत्तीसगढ़ के हसदेव अरंड जंगल में विरोध प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं ये आदिवासी?
    2024/02/01

    21 और 22 दिसंबर 2023 को, छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के अधिकारियों ने हसदेव अरंड जंगल में कोयला खदानों के दूसरे चरण के विस्तार के लिए सैकड़ों हेक्टेयर ज़मीन में हजारों पेड़ों को काट दिया। पिछले एक दशक से आदिवासी छत्तीसगढ़ में 1,500 किमी से अधिक क्षेत्र में फैले हसदेव अरंड जंगलों को बचाने के संघर्ष का हिस्सा रहे हैं। यह क्षेत्र भारत के आदिवासी समुदायों का घर है, जहां घने जंगलों के नीचे अनुमानित पांच अरब टन कोयला दबा हुआ है।

    "बात मुलाकात" के इस एपिसोड में, सुनो इंडिया की स्नेहा रिछारिया आलोक शुक्ला से बात करती हैं, जो छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक हैं और एक दशक से हसदेव आंदोलन से जुड़े हुए हैं।

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    21 分
  • फोर्टिफाइड चावल - क्यों आदिवासी किसान सरकार द्वारा प्रचारित इस नए चावल को स्वीकार क्यों नहीं कर रहे हैं?
    2023/12/27

    सरकार राशन के चावल में अब उन्हें “फ़ॉर्टिफ़ायड चावल" मिला कर दे रही हैं। सराकर का दावा है की यह चावल विटामिन और आयरन का पाउडर के चूरे को मिला कर फ़ैक्टरी में तैय्यार किया गया हे। यह चावाल खून की कमी और कुपोषण को ठीक करने में मदद करेगा। डॉक्टर और वैज्ञानिको में अभी तक इस पर सहमति नहीं हैं। यह तीन हज़ार करोड़ के बजट की नयी नीति कितनी कामगार होगी, इस पर लोगों में अभी संदेह हे।
    “बात मुलाक़ात” के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार अनुमेहा यादव ने उड़ीसा व झारखंड के किसानों से बातचीत की। गाँव में आदिवासी किसान जो खुद सदियों से धान उगाते आए हैं बताते हैं की वह इस तरीके से पोषण को ठीक करने का सही तरीका नहीं मानते। वह कहते हैं “फ़ॉर्टिफ़ायड चावल" में खाने के गुण, जैसे की पकाने पर चावाल का गाच (स्वाभाविक गोंद) और उसका स्वाद सामान्य चावाल जैसा नहीं ह। गाओं के लोग इस तरह के चावल को पसंद नहीं करते और इसे बाकि खाने से अलग कर देते हैं।

    धान व अन्य खाने में पोषण कम होने का कारण तेज़ी से लुप्त होती बीज विविधता और धान को फ़ैक्टरी में सफ़ेद से सफ़ेद बानाने की औद्योगिक क्रम और जल वायु परिवर्तन है। जहां रासायनिक खाद आदि से खेती बदल रही है, वहीं कुछ आदिवासी किसान सूनो इंडिया को बताते हैं की वह पारम्परिक भोजन व बीज बचाने की कोशश भी कर रहें हैं, ताकि पोषण, स्वाद और पर्यावरण बने रहें।

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    18 分
  • कृषि के असंगठित क्षेत्र में महिलाओं पर कैसे होती है हिंसा?
    2023/10/17

    कार्यस्थल पर महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे यौन उत्पीड़न की रोकथाम, निषेध और निवारण के लिए 2013 में Protection of Women from Sexual Harassment Act, 2013 (PoSH) अधिनियम बनाया गया। PoSH अधिनियम कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए नियोक्ताओं पर कानूनी दायित्व डालता है। लेकिन असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए यह कारगर साबित नहीं होता।

    बात मुलाक़ात के इस एपिसोड में हम भारतीय कृषि क्षेत्र में महिला श्रमिकों पर हो रही हिंसा की बात कर रहे हैं। फेमिनिस्ट पॉलिसी कलेक्टिव और महिला किसान अधिकार मंच (MAKAAM) ने ग्रामीण महिला श्रमिकों के खिलाफ होने वाली हिंसा का अध्ययन किया। ये स्टडी कृषि क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी और महिलाओं के लिए कार्यस्थल की परिभाषा पर कुछ बुनियादी सवाल खड़े करती है। खेतों में काम करते वक्त महिलाओं पर की जाने वाली हिंसा के क्या स्वरूप हैं? इसके छोटी और लंबी अवधि में क्या मायने हो सकते हैं? इसे समझने के लिए स्नेहा रिछारिया ने नारीवादी कार्यकर्ता सेजल दंड से बात की।

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    18 分
  • मणिपुर में डॉक्टरों ने राहत शिविरों की स्वास्थ सुविधाओं पर क्यों जताई गंभीर चिंता?
    2023/09/07

    मणिपुर पिछले चार महीनों से सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में है, जिसके चलते हज़ारों मैतेई और कुकी राहत शिविरों में है। गैर सरकारी संगठन इंडियन डॉक्टर्स फॉर पीस एंड डेवलपमेंट (IDPD) के डॉक्टरों की एक टीम ने 1 से 3 सितम्बर के बीच मैतेई और कुकी क्षेत्रों में राहत शिविरों का दौरा किया।

    राहत शिविरों का दौरा करने वाले डॉक्टरों के इस समूह ने इनमे रहने वाले लोगों के पोषण, मानसिक स्वास्थ्य और सामान्य स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बेहद गंभीर रूप से चिंता व्यक्त की हे। डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि यदि तत्काल उपाय नहीं किए गए तो राहत शिविरों में महामारी फैल सकती है। रिपोर्टर स्नेहा रिछारिया ने इन हालातों की गंभीरता और इसके उपायों को समझने के लिए डॉ. शकील-उर-रहमान से बात की। डॉ. शकील इस फैक्ट फाइंडिंग टीम का हिस्सा थे और वर्तमान में IDPD के जनरल सेक्रेटरी भी हैं।

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    18 分
  • भारत में किसान-मज़दूरों को कैसे प्रभावित करती है इंटरनेट बंदी?
    2023/06/27

    2018 के बाद से, दुनिया के किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में सबसे अधिक बार इंटरनेट बंद किया गया. विरोध प्रदर्शनों से लेकर परीक्षा में नक़ल रोकने तक, भारत में इंटरनेट बंदी होती रहती है. जाहिर है की कई कारणों से सरकारें इंटरनेट बंद करती हैं.

    लेकिन इंटरनेट का अचानक बंद हो जाना आम लोगों के दैनिक जीवन पर क्या प्रभाव डालता है? ह्यूमन राइट्स वॉच और इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने हाल ही में एक रिपोर्ट में कहा की इंटरनेट का बंद हो जाना विशेष रूप से निचले तबके के लोगों के लिए बेहद खतरनाक साबित होता है.. कारण है सरकारी योजनाओं का डिजिटलीकरण. बात मुलाक़ात के इस एपिसोड में स्नेहा रिछारिया ने इस रिपोर्ट के सह-लेखक से बात की.

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    32 分
  • बिहार में क्यों उठ रही है शराबबंदी कानून की समीक्षा की मांग?
    2023/05/16

    बिहार में मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पूर्वी चंपारण जिले के पांच थाना क्षेत्रों में जहरीली शराब से अप्रैल महीने में के तीसरे सप्ताह में कम-से-कम 30 लोगों की मौत हुई. इसके पहले December 2022 में सारण जिले और इसके पड़ोस में हए जहरीली शराब कांड में कम-से-कम 40 लोगों की मौत हुई थी.
    बिहार में रह-रह कर होने वाली ऐसी घटनाएं बताती हैं कि बिहार में शराबबंदी का एक समय चक्र पूरा हो चुका है. एक तरफ सरकार शराबबंदी कानून का और कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने की बात दोहराती है तो दूसरी ओर विपक्ष इसकी समीक्षा से लेकर या इसे खत्म किए जाने की भी मांग करता है।
    बात-मुलाकात के इस एपिसोड में होस्ट मनीष शांडिल्य शराबबंदी के कई परिदृश्य से आपको रूबरू करवायेंगे। इस एपिसोड में ये सीनियर जर्नलिस्ट सोरूर अहमद, भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद, जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार और सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन से बात करके शराब बंदी के पुरे परिप्रेक्ष्य को समझने की कोशिश करेंगे।

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    22 分