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サマリー
あらすじ・解説
"श्री भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 16" में भगवान श्रीकृष्ण यह समझाते हैं कि जो व्यक्ति अपने कर्मों का कर्ता केवल स्वयं को मानता है और अपने अहंकार के कारण अपने कर्मों में अन्य कारकों की भूमिका को नहीं देखता, वह सही दृष्टिकोण से वंचित रहता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि ऐसा व्यक्ति सीमित बुद्धि के कारण कर्म के वास्तविक स्वरूप को नहीं समझ पाता। यह श्लोक हमें अहंकार को छोड़कर समस्त कर्मों में ईश्वर और प्रकृति की भूमिका को स्वीकार करने की प्रेरणा देता है।
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