• Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18

  • 著者: Yatrigan kripya dhyan de!
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Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18

著者: Yatrigan kripya dhyan de!
  • サマリー

  • "Welcome to Shri Bhagavad Gita: Chapter 18 Shlokas, where we explore the timeless wisdom of श्रीकृष्ण as revealed in the 18th chapter of the Bhagavad Gita. Chapter 18, also known as Moksha Sannyasa Yoga (मोक्ष संन्यास योग), is one of the most profound chapters, discussing the paths of renunciation (संन्यास) and duty (कर्मयोग). Each episode delves into the shlokas of this chapter, offering a detailed explanation of the original Sanskrit text followed by a meaningful Hindi translation. We explore Lord Krishna’s teachings on how to live a life of selfless action, detachment from the fruits of wo
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あらすじ・解説

"Welcome to Shri Bhagavad Gita: Chapter 18 Shlokas, where we explore the timeless wisdom of श्रीकृष्ण as revealed in the 18th chapter of the Bhagavad Gita. Chapter 18, also known as Moksha Sannyasa Yoga (मोक्ष संन्यास योग), is one of the most profound chapters, discussing the paths of renunciation (संन्यास) and duty (कर्मयोग). Each episode delves into the shlokas of this chapter, offering a detailed explanation of the original Sanskrit text followed by a meaningful Hindi translation. We explore Lord Krishna’s teachings on how to live a life of selfless action, detachment from the fruits of wo
Yatrigan kripya dhyan de!
エピソード
  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 23
    2024/11/08

    इस वीडियो में हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 18 के श्लोक 23 का अध्ययन करेंगे, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण सात्त्विक कर्म के लक्षणों का वर्णन करते हैं। सात्त्विक कर्म वह होता है जो निस्वार्थ भाव से, बिना किसी आसक्ति और राग-द्वेष के किया जाता है। इस प्रकार का कर्म फल की इच्छा से मुक्त होता है और इसे परम शांति और संतोष प्राप्ति का मार्ग माना गया है। जानें इस श्लोक के माध्यम से सात्त्विक कर्म के महत्व और इसके लाभों को।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 22
    2024/11/08

    इस वीडियो में हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 18 के श्लोक 22 का अध्ययन करेंगे, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण तामसिक ज्ञान की विशेषताओं का वर्णन करते हैं। तामसिक ज्ञान वह है जो किसी एक विषय या कार्य में अनावश्यक रूप से आसक्त रहता है, बिना कारण या सत्य की गहरी समझ के। यह ज्ञान सीमित और असत्य पर आधारित होता है, जिससे व्यक्ति वास्तविकता के गहन अर्थ को नहीं समझ पाता। जानें इस श्लोक के माध्यम से तामसिक ज्ञान के प्रभाव और इसके गुणों को विस्तार से।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 21
    2024/11/08

    इस वीडियो में हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 18 के श्लोक 21 का गहन अध्ययन करेंगे, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण राजसिक ज्ञान की विशेषताओं का वर्णन करते हैं। राजसिक ज्ञान वह है जो सभी प्राणियों में अलग-अलग गुण, रूप और स्वभाव देखता है, और उसमें एकता का बोध नहीं होता। ऐसा ज्ञान व्यक्ति को भिन्नता में बांधता है और आत्मिक एकता से दूर रखता है। जानें इस श्लोक के माध्यम से, कैसे यह दृष्टिकोण व्यक्ति को सीमित दृष्टिकोण में बांधता है।

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    BhagavadGita, Chapter18, Shlok21, RajasikGyan, KrishnaTeachings, GeetaWisdom, SpiritualKnowledge, DivineTeachings, DifferentiatedKnowledge, HinduPhilosophy, श्रीकृष्ण, राजसिकज्ञान, गीता, भगवदगीता, अध्याय18, अध्यात्मिकज्ञान, भिन्नता_का_ज्ञान, भारतीयदर्शन, आत्मिकएकता, KnowledgeOfDuality, SpiritualGrowth, LifeLessons

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