• Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 17

  • 2024/10/27
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Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 17

  • サマリー

  • श्री भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 17" में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति अहंकार से मुक्त है और जिसकी बुद्धि कर्मों के फल में नहीं उलझती, वह सही ज्ञान के साथ कार्य करता है। ऐसा व्यक्ति, भले ही कर्म करता है, परन्तु वह न तो किसी को हानि पहुंचाता है और न ही किसी बंधन में बंधता है। इस श्लोक में श्रीकृष्ण सिखाते हैं कि अहंकार रहित और शुद्ध बुद्धि से किए गए कर्म व्यक्ति को किसी भी प्रकार के बंधन में नहीं डालते और उसे आत्मिक स्वतंत्रता का अनुभव कराते हैं।

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あらすじ・解説

श्री भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 17" में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति अहंकार से मुक्त है और जिसकी बुद्धि कर्मों के फल में नहीं उलझती, वह सही ज्ञान के साथ कार्य करता है। ऐसा व्यक्ति, भले ही कर्म करता है, परन्तु वह न तो किसी को हानि पहुंचाता है और न ही किसी बंधन में बंधता है। इस श्लोक में श्रीकृष्ण सिखाते हैं कि अहंकार रहित और शुद्ध बुद्धि से किए गए कर्म व्यक्ति को किसी भी प्रकार के बंधन में नहीं डालते और उसे आत्मिक स्वतंत्रता का अनुभव कराते हैं।

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