• Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 23

  • 2024/11/08
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Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 23

  • サマリー

  • इस वीडियो में हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 18 के श्लोक 23 का अध्ययन करेंगे, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण सात्त्विक कर्म के लक्षणों का वर्णन करते हैं। सात्त्विक कर्म वह होता है जो निस्वार्थ भाव से, बिना किसी आसक्ति और राग-द्वेष के किया जाता है। इस प्रकार का कर्म फल की इच्छा से मुक्त होता है और इसे परम शांति और संतोष प्राप्ति का मार्ग माना गया है। जानें इस श्लोक के माध्यम से सात्त्विक कर्म के महत्व और इसके लाभों को।

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あらすじ・解説

इस वीडियो में हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 18 के श्लोक 23 का अध्ययन करेंगे, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण सात्त्विक कर्म के लक्षणों का वर्णन करते हैं। सात्त्विक कर्म वह होता है जो निस्वार्थ भाव से, बिना किसी आसक्ति और राग-द्वेष के किया जाता है। इस प्रकार का कर्म फल की इच्छा से मुक्त होता है और इसे परम शांति और संतोष प्राप्ति का मार्ग माना गया है। जानें इस श्लोक के माध्यम से सात्त्विक कर्म के महत्व और इसके लाभों को।

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