• Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 23
    2024/11/08

    इस वीडियो में हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 18 के श्लोक 23 का अध्ययन करेंगे, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण सात्त्विक कर्म के लक्षणों का वर्णन करते हैं। सात्त्विक कर्म वह होता है जो निस्वार्थ भाव से, बिना किसी आसक्ति और राग-द्वेष के किया जाता है। इस प्रकार का कर्म फल की इच्छा से मुक्त होता है और इसे परम शांति और संतोष प्राप्ति का मार्ग माना गया है। जानें इस श्लोक के माध्यम से सात्त्विक कर्म के महत्व और इसके लाभों को।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 22
    2024/11/08

    इस वीडियो में हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 18 के श्लोक 22 का अध्ययन करेंगे, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण तामसिक ज्ञान की विशेषताओं का वर्णन करते हैं। तामसिक ज्ञान वह है जो किसी एक विषय या कार्य में अनावश्यक रूप से आसक्त रहता है, बिना कारण या सत्य की गहरी समझ के। यह ज्ञान सीमित और असत्य पर आधारित होता है, जिससे व्यक्ति वास्तविकता के गहन अर्थ को नहीं समझ पाता। जानें इस श्लोक के माध्यम से तामसिक ज्ञान के प्रभाव और इसके गुणों को विस्तार से।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 21
    2024/11/08

    इस वीडियो में हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 18 के श्लोक 21 का गहन अध्ययन करेंगे, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण राजसिक ज्ञान की विशेषताओं का वर्णन करते हैं। राजसिक ज्ञान वह है जो सभी प्राणियों में अलग-अलग गुण, रूप और स्वभाव देखता है, और उसमें एकता का बोध नहीं होता। ऐसा ज्ञान व्यक्ति को भिन्नता में बांधता है और आत्मिक एकता से दूर रखता है। जानें इस श्लोक के माध्यम से, कैसे यह दृष्टिकोण व्यक्ति को सीमित दृष्टिकोण में बांधता है।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 20
    2024/11/08

    इस वीडियो में हम श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 18 के श्लोक 20 का अध्ययन करेंगे, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण सात्त्विक ज्ञान का स्वरूप बताते हैं। सात्त्विक ज्ञान वह है जो सभी प्राणियों में एक ही अटूट और अविनाशी आत्मा को देखता है। इस ज्ञान में विविधता के बीच एकता का दर्शन होता है। जानें कैसे यह दृष्टिकोण व्यक्ति को परम सत्य के निकट ले जाता है और सभी जीवों में एकता का अनुभव कराता है। BhagavadGita #Chapter18 #Shlok20 #SattvikGyan #UnityInDiversity #SpiritualKnowledge #GeetaWisdom #DivineTeachings #KrishnaWisdom #सात्त्विकज्ञान #गीता #भगवदगीता #अध्याय18 #श्रीकृष्ण #अध्यात्मिकज्ञान #सर्वभूतेषु_एकता

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 19
    2024/11/08

    इस वीडियो में श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 18 के श्लोक 19 का संस्कृत पाठ, हिंदी अनुवाद और उसकी व्याख्या दी गई है। भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में बताते हैं कि ज्ञान, कर्म, और कर्ता को तीन गुणों—सत्त्व, रजस और तमस—के अनुसार वर्गीकृत किया गया है। वह अर्जुन से कहते हैं कि इन गुणों के भेद को ध्यान से समझे, क्योंकि ये गुण हमारे कर्मों और जीवन के दृष्टिकोण को प्रभावित करते हैं।
    In this video, we present the Sanskrit text, Hindi translation, and explanation of Shloka 19 from Chapter 18 of the Bhagavad Gita. Lord Krishna explains that knowledge, action, and the doer are classified based on the three qualities—Sattva, Rajas, and Tamas. He urges Arjuna to understand these distinctions carefully, as they shape our actions and worldview.

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 18
    2024/11/07

    श्री भगवद गीता के अध्याय 18 के श्लोक 18 में भगवान श्रीकृष्ण कर्म के प्रेरक तत्वों और उसकी प्रक्रिया को समझाते हैं। वे बताते हैं कि ज्ञान, ज्ञेय (जिसे जाना जाना है), और परिज्ञाता (जानने वाला) ये तीन कर्म की प्रेरणा के आधार हैं। इसके साथ ही, कर्म का संपूर्ण संघटन तीन घटकों पर आधारित है—करण (साधन), कर्म (कार्य), और कर्ता (कर्म करने वाला)। यह श्लोक कर्म के पीछे के कारणों और प्रक्रियाओं को जानने का मार्गदर्शन करता है।


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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 17
    2024/10/27

    श्री भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 17" में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो व्यक्ति अहंकार से मुक्त है और जिसकी बुद्धि कर्मों के फल में नहीं उलझती, वह सही ज्ञान के साथ कार्य करता है। ऐसा व्यक्ति, भले ही कर्म करता है, परन्तु वह न तो किसी को हानि पहुंचाता है और न ही किसी बंधन में बंधता है। इस श्लोक में श्रीकृष्ण सिखाते हैं कि अहंकार रहित और शुद्ध बुद्धि से किए गए कर्म व्यक्ति को किसी भी प्रकार के बंधन में नहीं डालते और उसे आत्मिक स्वतंत्रता का अनुभव कराते हैं।

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  • Shri Bhagavad Gita Chapter 18 | श्री भगवद गीता अध्याय 18 | श्लोक 16
    2024/10/27

    "श्री भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 16" में भगवान श्रीकृष्ण यह समझाते हैं कि जो व्यक्ति अपने कर्मों का कर्ता केवल स्वयं को मानता है और अपने अहंकार के कारण अपने कर्मों में अन्य कारकों की भूमिका को नहीं देखता, वह सही दृष्टिकोण से वंचित रहता है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि ऐसा व्यक्ति सीमित बुद्धि के कारण कर्म के वास्तविक स्वरूप को नहीं समझ पाता। यह श्लोक हमें अहंकार को छोड़कर समस्त कर्मों में ईश्वर और प्रकृति की भूमिका को स्वीकार करने की प्रेरणा देता है।

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